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Showing posts from February, 2019

* मैं नारी ही तो हूँ *

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आज नारी हर क्षेत्र में  पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, और उन्हें आजादी है कि वह अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जी सकती हैं !  दुनिया में उनका भी पुरुषों के बराबर मान - सम्मान है, बराबर का अधिकार है आप सब ने भी इसी तरह की बड़ी - बड़ी बातें सुनी होंगी आपको क्या लगता है, इसमें कितनी सच्चाई है, मैं मानती हूं कि आज हर क्षेत्र में नारी है, लेकिन क्या उसे पुरुषों के बराबर इज्जत मिलती है ? क्या उन लोगों को भी उसी सम्मान की नजर से देखा जाता है जैसे एक पुरुष को देखा जाता है ? मैं ऐसा नहीं मानती ज्यादातर पुरुष यह बर्दाश्त नहीं कर सकते कि उनकी पत्नी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, समाज में उसे भी रुतबा, नाम, मान -सम्मान मिले अगर औरत इस काबिल बन भी गई तो हर वक्त उसे यह एहसास कराया जाता है कि वह एक नारी है, दुर्बल, बेचारी, बेसहारा, लाचार है वह पुरुष नाम की बैसाखी के बिना नहीं चल सकती   किंतु पुरुष यह भूल जाते हैं कि वह नारी ही है जिसने उन्हें जन्म दिया, वह नारी ही है जिसने उनके बच्चों का पालन पोषण किया, वह नारी ही है जिससे उनका वंश आगे चल रहा है ! हम चाहे जितनी बड़ी - बड़ी

* आलसी राजा *

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बहुत पुरानी बात है एक राजा था वह बहुत आलसी था वह कोई भी काम समय पर नहीं करता था इसलिए उसके राज्य में अव्यवस्था फैली हुई थी वह अपना काम हमेशा कल पर टालता रहता था......... उस की तीन रानियां थी उसमें से सबसे बड़ी रानी जिसका नाम नानावती था वह बहुत समझदार और होशियार थी...... राजा के आलसी पन से सारे दरबारी, मंत्री और उसकी रानियां सभी बहुत परेशान रहती थे ..... उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता था कि कहीं कोई राजा के आलसी पन का फायदा उठाकर राज्य पर आक्रमण ना कर दे लेकिन राजा को कोई चिंता नहीं थी वह आराम से खाता - पीता और सोता रहता था कई बार मंत्रियों ने राजा को राज्य की सच्चाई से अवगत कराना चाहा परंतु राजा उसकी बात बीच में ही काट देता था और कहता था कि...... सब कुछ ठीक हो जाएगा, मैं सब संभाल लूंगा, आखिर वह राजा था उसके सामने कौन यह हिम्मत जुटा पाता कि उसके खिलाफ कोई बोले........ धीरे-  धीरे दिन बीतते जा रहे थे राजा को जब जिस चीज की जरूरत होती उसे वह समय पर मिलता था अब उसे और क्या चाहिए था...... उसके आसपास क्या हो रहा है उसने कभी भी जानने की कोशिश नहीं की........ जिस राज्य का राजा ऐ

* प्रयाश्चित *

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  कभी-कभी जाने अनजाने हमसे गलती हो जाती है जो पूरी जिंदगी हमारा पीछा करती रहती है हम चाहे जितनी कोशिश कर ले पर यह हमारा पीछा नहीं छोड़ती..... मैं बहुत छोटा था करीब 7 साल का रहा हूंगा यह तब की बात है.... मैं मम्मी पापा के साथ चिड़ियाघर देखने गया था पापा की रविवार को छुट्टी रहती है पापा हर रविवार को हमें घुमाने ले जाते थे उस दिन भी हर रविवार की तरह पापा हमें घुमाने ले जा रहे थे...... पहले हम बाजार गए वहां से मम्मी ने खाने - पीने की कुछ चीजें खरीदी वही मैंने एक खिलौने की दुकान देखी मैंने खिलौने लेने की जिद की तो पापा उस दुकान पर मुझे ले गए वहां मुझे एक छोटी सी पिस्तौल पसंद आ गई  जिसके साथ छोटी -छोटी प्लास्टिक की गोलियां थीं ..... पापा ने मना किया कि यह नहीं लेना इससे किसी को चोट लग जाएगी पर मैंने जिद की तो उन्होंने हां कर दी और कहा कि तुम इससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचओगे, मैंने उनसे वादा किया कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा फिर वहां से हम चिड़ियाघर आ गए.... वहां पर कई तरह के जानवर थे मुझे बड़ा मजा आ रहा था मैं घूमते - घूमते थक गया और मुझे भूख भी लग रही थी मैंने मां से कुछ खान

* अहसास *

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                      टीनू एक नासमझ लड़की थी पढ़ने - लिखने में भी उसका कुछ ख़ास मन नहीं लगता था ! माँ उसे हमेशा घर का पता  और मोबाइल नम्बर याद करवाने की कोशिश करतीं रहतीं थीं, पर टीनू थी कि हमेशा टाल देती थीं  ! टीनू के पिता बचपन में ही गुजर गए थे इसीलिए टीनू लाड - प्यार में थोड़ा बिगड़ गई थी, 1 दिन की बात है टीनू रोज की तरह स्कूल बस से वापस घर आ रही थी बस से नीचे उतरी तो उसने एक खरगोश के बच्चे को देखा, वह सफेद रंग का खूबसूरत नीली आंखों वाला खरगोश का बच्चा था उस बच्चे से थोड़ी दूरी पर उसकी मां घास खा रही थी ! टीनू ने बच्चे को देखा तो उससे रहा नहीं गया वह उसे पकड़ने की कोशिश करने लगी !....थोड़ी देर बाद उसने बच्चे को पकड़ लिया और उसे अपने साथ घर ले आई.... जो कि वहां से बस कुछ ही दूरी पर था टीनू की माँ नें खरगोश के बच्चे को टीनू के हाथ में देखा तो बोली....... टीनू.. ... इसे तुम कहां से ले आई ........ टीनू -....... यह मुझे यही पास में मिला ! मां -...इसे जाकर फौरन वहीं पर छोड़ आओ...... टीनू -....... नहीं मां मैं इसे नहीं छोडूंगी ! देखो ना कितना प्यारा है.... मां -... बेटा इस

* निर्वाण *

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 हमें ईश्वर ने जन्म दिया, इस संसार में भेजा, हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम उसके बताए हुए रास्ते पर चलें और अपने धर्म का पालन करें ! लेकिन हम माया, मोह में पड़कर अपना हर कर्तव्य, धर्म भूल जाते हैं !  और ग़लत  तरीके से धन,  दौलत इकट्ठा करने की हर मुमकिन कोशिश करते रहते हैं क्योंकि हम अपने परिवार वालों को सारी सुख - सुविधा देना चाहते हैं अपने बच्चों के लिए वह सब कुछ करना चाहते हैं जिसके सपने हमने कभी अपने लिए देखे थे और इन्हीं सब की कोशिश करते - करते अपना सारा जीवन उनकी (बच्चों की खुशी) के लिए न्योछावर कर देते हैं, पर जब हमें हमारे बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है ( वृद्धा अवस्था में ) तब हम हमारे बच्चों के लिए बोझ बन जाते हैं हमारे बच्चे इतना कहने में भी थोड़ा सा संकोच नहीं करते कि "आपने हमारे लिए किया ही क्या है" बिना यह सोचे कि हमने अपना सारा जीवन इनकी पढ़ाई-लिखाई और भविष्य बनाने के लिए लगा दिया ! तब हमें ईश्वर की याद आती है, ईश्वर ही हमारा एकमात्र सहारा होता है जिससे हमें उम्मीद होती है अगर हम तब भी इस संसार रूपी माया मोह को त्याग कर अपना बचा हुआ जीवन उस इश्वर की

*सच्ची सुन्दरता *

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गाँव में एक किसान रहता था ! उसकी दो बेटियाँ थी, बड़ी बेटी बहुत सुन्दर थी,उसके काले, घने,लम्बे, रेशमी बाल  हिरनी की तरह आँखे, होंठ जैसे गुलाब की पंखुड़ी, जिस्म ऐसा कि जैसे किसी ने साँचे में ढाला हो, सोने की तरह दमकती काया, जो एक बार देखता तो बस देखता ही रह जाता,  पर वह बहुत घमंडी थी ! और वहीं छोटी बेटी देखने में साधरण  नयन नक्श और सांवले रंग की थी ! पर उसका स्वभाव निर्मल था, बड़ी बेटी का नाम उसकी सुंदरता को देखते हुए रखा गया था !  "रूपा"  और छोटी बेटी का नाम उसके स्वभाव के अनुसार "निर्मला" रखा गया था ! निर्मला अपने नाम की तरह ही थी, उसका स्वभाव मीठा था उसके मन में अपने से बड़ों के लिए आदर और छोटों के लिए स्नेह था, उसने बहुत सारी  अच्छाइयां थी,  उसे अपने सांवले रंग - रूप का  थोड़ा सा भी दुख नहीं था, सारे गांव वाले उसे बहुत मानते थे  रूपा घमंडी और जिद्दी स्वभाव वाली होने के साथ-साथ बदतमीज भी थी वह अपने आप को दुनिया की सबसे सुंदर लड़की मानती थी और अपने इस स्वभाव के चलते वह लोगों को काफी खरी-खोटी सुनाती रहती थी गांव वाले उससे बात तक करना पसंद नहीं करते थे,

*अर्पण *

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 हमारी जिंदगी में कभी कोई इतना खास बन जाता है, कि हम उसके लिए सब कुछ करना चाहते हैं ! उसकी छोटी सी भी तकलीफ हम से बर्दाश्त नहीं होती, हमें बस ऐसा लगता है कि हम ऐसा क्या करें कि उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए और उसकी छोटी सी मुस्कुराहट के लिए अगर हमें तकलीफों का भी सामना करना पड़े तो हम पीछे नहीं हटते उसकी खुशी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देना चाहते हैं ! मेरी यह कहानी अर्पण ऐसे ही "खास"इंसान पर आधारित है !  मेरा नाम प्रेरणा है, मैं एक मध्यम परिवार मैं पली बढ़ी हूं, घर पर मां - पापा और छोटा भाई है हमारा मकान कानपुर में है मैं एम ए पास करने के बाद B.Ed कर रही थी आगरा में मुझे कॉलेज मिला था जब भी छुट्टियां होती थी मैं आगरा से कानपुर आ जाती थी ! उस दिन भी मैं कानपुर में ही थी जब यह घटना घटी ! हमारे मोहल्ले में एक परिवार रहता था पति पत्नी और उनके दो बच्चे लड़का करीब 8 साल का था उसका नाम केशव था और लड़की करीब पांच साल की रही होगी, उसका नाम लवली था वह अपने नाम की तरह प्यारी थी वह कभी - कभी हमारे घर आ जाया करती थी लवली के पिता बहुत शराब पीते थे अगर उन्हे