* मैं नारी ही तो हूँ *


आज नारी हर क्षेत्र में  पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, और उन्हें आजादी है कि वह अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जी सकती हैं !  दुनिया में उनका भी पुरुषों के बराबर मान - सम्मान है, बराबर का अधिकार है आप सब ने भी इसी तरह की बड़ी - बड़ी बातें सुनी होंगी आपको क्या लगता है, इसमें कितनी सच्चाई है, मैं मानती हूं कि आज हर क्षेत्र में नारी है, लेकिन क्या उसे पुरुषों के बराबर इज्जत मिलती है ? क्या उन लोगों को भी उसी सम्मान की नजर से देखा जाता है जैसे एक पुरुष को देखा जाता है ?
मैं ऐसा नहीं मानती ज्यादातर पुरुष यह बर्दाश्त नहीं कर सकते कि उनकी पत्नी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, समाज में उसे भी रुतबा, नाम, मान -सम्मान मिले अगर औरत इस काबिल बन भी गई तो हर वक्त उसे यह एहसास कराया जाता है कि वह एक नारी है, दुर्बल, बेचारी, बेसहारा, लाचार है वह पुरुष नाम की बैसाखी के बिना नहीं चल सकती

  किंतु पुरुष यह भूल जाते हैं कि वह नारी ही है जिसने उन्हें जन्म दिया, वह नारी ही है जिसने उनके बच्चों का पालन पोषण किया, वह नारी ही है जिससे उनका वंश आगे चल रहा है !
हम चाहे जितनी बड़ी - बड़ी बातें करते रहे नारी के मान - सम्मान के बारे में लेकिन हमारा जो समाज है वह किसी भी कीमत पर नारी को पुरुषों की अपेक्षा समान अधिकार नहीं दे सकता
पुरुष कुछ भी करने के लिए आजाद हैं किंतु नारी अगर अपना हक (अधिकार ) मांगे तो उसे बदले में गाली - गलौज मारपीट और लांछन मिलता है
 हम अक्सर घरों में देखते हैं कि पुरुष सरासर गलत करते हैं और औरतें चुपचाप उनकी इज्जत को बचाए हुए उनका हर जुर्म बर्दाश्त करती रहती हैं !कभी बच्चों की खातिर, तो कभी समाज की खातिर, या कभी अपने मां-बाप की इज्जत की खातिर !
आखिर कब तक यह सब होता रहेगा,..... आखिर कब उन्हें भी पुरुषों के  समान अधिकार मिलेगा, समाज में औरत का चाहे जो रुतबा हो पर घर में उसके पति की नजरों में उसकी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं होती पति हमेशा उसे अपने पैर की जूती समझता है जिसे वह जब चाहे पहन सकता है और जब चाहे उतार कर फेंक सकता है
आखिर क्यों ?...... क्यों है लोगों की नारी के प्रति ऐसी मानसिकता...... आज समाज में लोग काली माता, दुर्गा, लक्ष्मी जी, सरस्वती सभी की पूजा करते हैं...... क्या वह नारियां नहीं हैं ? फिर उस नारी के लिए जो अपने मां - बाप अपने भाई बहन, घर -परिवार सब कुछ छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ आप पुरुषों के लिए अपना सारा जीवन निछावर कर देती है उसके प्रति यह कैसा व्यवहार है ? क्या हम नारियां सदैव पुरुष रूपी वैशाखी के सहारे ही चलती रहेंगी ? या समाज में अपनी खुद की कोई पहचान बनाएंगी. .... अगर हम में एक नई जिंदगी को जन्म देने की ताकत है तो फिर हमें हमारे अधिकार लेने में परेशानी क्यों होती है....... नारी प्यार का सागर है, दया की देवी है, वह अपना हर कर्तव्य बखूबी निभाती है लेकिन फिर भी उस के साथ दुर्व्यवहार होता है
सही मायने में अगर देखा जाए तो नारी को अब तक स्वेच्छा से जीने का अधिकार नहीं है हम चाहे जितने आधुनिक हो जाएं पर नारी के प्रति हमारी सोच कभी नहीं बदलेगी, चाहे नारी जितनी कोशिश कर ले खुद को आजाद करने की परंतु वह नहीं हो सकती क्योंकि हमारा समाज उसे आजाद नहीं होने देगा
हमारे देश को आजादी मिले सालों गुजर गए पर हम नारियां आज भी गुलामी की जिंदगी बसर कर रही हैं अगर देखा जाए तो हर नारी की कहानी लगभग एक सी होती है शायद हजार में से कोई एक नारी होगी जिसने अपने अधिकार स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए पुरुष का डटकर मुकाबला किया और दिखा दिया कि नारी अगर चाहे तो कुछ भी कर सकती है और पुरुष के बिना भी वह अपनी जिंदगी गुजार सकती है, और अपने बच्चों को भी पाल सकती हैं... वह बेचारी, बेसहारा, दुखियारी, अबला नहीं है !

मैं हिमाचल प्रदेश की रहने वाली एक साधारण परिवार में पली बढ़ी लड़की हूं  मैं बचपन से ही बड़े चंचल स्वभाव की थी मेरा नाम आकाशी है मुझे पढ़ाई लिखाई में कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी हां खेल कूद और संगीत मुझे बहुत अच्छा लगता था हमारे स्कूल में जब भी कोई रैली या प्रोग्राम होता तो मैं उसमें जरूर भाग लेती थी  और हमेशा प्रथम आती थी बचपन बहुत अच्छा बीता मेरे मम्मी पापा बहुत अच्छे थे मुझे बहुत प्यार करते थे जब मैं दसवीं में पढ़ती थी तभी मेरी मम्मी की हालत बहुत खराब हो गई थी वह बहुत बीमार हो गई थी उन्हें लगता था कि शायद वह अब स्वस्थ नहीं होंगी इसीलिए उन्होंने जल्दी से जल्दी मेरी शादी करने का फैसला किया उन्होंने बहुत जल्द एक अच्छा रिश्ता ढूंढ लिया और मेरी शादी कर दी मेरे पति सर्विस करते थे भरा पूरा परिवार था
 कुछ दिन ठीक-ठाक गुजर गए लेकिन उसके बाद मुझे एहसास होने लगा कि शायद मेरे पति के पास मेरे लिए समय नहीं है बस सुबह 10:00 बजे काम पर जाते और शाम को 6:00 बजे वापस आ जाते मैं उनके साथ समय बिताना चाहती थी उनके साथ अपने मन की बातें शेयर करना चाहती थी पर जब भी मैं उनसे बात करने की कोशिश करती वह हमेशा टाल देते थे कि अभी टाइम नहीं है बाद में सुनूंगा और घर से बाहर चले जाते और रात में देर से वापस आते धीरे-धीरे समय गुजरता गया पर उनके बर्ताव में कोई परिवर्तन नहीं आया मैं अपने आप को अकेला महसूस करने लगी थी इसी के चलते मैंने अपने पति से आगे पढ़ने कि अपनी इच्छा को जाहिर किया और उन्होंने बिना घर वालों से पूछे मुझे आगे पढ़ने की इजाजत दे दी मैं प्राइवेट फॉर्म भरकर इंटर कर रही थी फिर भी मेरे ससुराल वालों को मेरा पढ़ना अच्छा नहीं लगा उन्होंने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि तुम्हारी पढ़ाई लिखाई से घर के कामों में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए ! मैं घर का सारा काम करती और जब मुझे फुर्सत मिलती तो मैं अपनी पढ़ाई करती फिर मैंने अच्छे नंबरों से इंटर पास कर लिया इस बीच में एक बच्चे की मां भी बन गई....  आगे भी पढ़ना  चाहा पर ससुराल वाले राजी नहीं हुए मेरे पति ने भी उनकी बात का मान रखा और मुझे आगे नहीं पढ़ने दिया !

 मेरे ससुराल वालों का व्यवहार भी मेरे प्रति अच्छा नहीं था बात-बात में ताने सुनाते रहते थे और मारपीट भी करते थे मैंने कई बार इस बारे में अपने पति से बात करने की कोशिश की पर उनके पास मेरी बातें सुनने का टाइम ही नहीं था वह सारा दिन और देर रात तक बाहर रहते थे इसलिए घर पर क्या हो रहा है उन्हें कुछ खबर ही नहीं होती थी बेटी के पैदा होने के बाद मैंने सोचा था कि शायद अब मेरे पति का रुझान हमारी तरफ हो जाएगा और अब वह हमारे साथ थोड़ा समय बिताएंगे पर ऐसा नहीं हुआ उन्हें ना ही मुझसे लगाव  था और ना ही मेरी बेटी से वह तो बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते थे हां इतना जरूर था कि वह हमारी जरूरत की हर चीज हमें लाकर दे देते थे कभी कोई कमी नहीं होने देते थे
 ससुराल वालों की नजर में मैं सिर्फ एक नौकरानी थी जो कि बस उनके इशारों पर सारा दिन नाचती रहती है कई बार सोचा कि मैं अपने पापा मम्मी को इस बारे में बताऊं पर यह सोचकर खामोश रह गई कि उन्हें बेकार में तकलीफ होगी और अब तो मुझे  इसी घर में इन्हीं के साथ रहना है कब तक मायके में जाकर रहूंगी वैसे भी हम लड़कियों को बचपन से ही यह बात सिखाई जाती है कि हम पराया धन है और हमारा असली घर हमारा ससुराल होता है मेरे ससुराल वाले मुझे मायके नहीं जाने देते थे हमेशा जब भी पापा मुझे लेने आते कोई ना कोई बहाना बनाकर उन्हें वापस कर देते मुझे अकेले में कभी पापा के साथ बात करने का मौका ना मिलता कोई ना कोई हमारे पास जरूर बैठ जाता था पापा मुझसे बात करना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि शायद मैं तकलीफ में हूं मैं बहुत कमजोर भी हो गई थी पापा बस इतना पूछते कि बेटा ठीक हो और मैं उन्हें सिर्फ इतना ही जवाब दे पाती कि हां पापा मैं ठीक हूं इसके अलावा मैं उनसे सिर्फ मम्मी के लिए पूछती कि वह कैसी हैं इसके बाद भी जब पापा चले जाते तो मेरे ससुराल वाले मुझे ताने सुनाते  थे कि बड़ा आया था इसका बाप पूछने की कैसी हो जब देखो मुंह उठाकर  चला आता है जैसे हम उसकी बेटी को मार ही डालेंगे अगर इतनी फिकर थी अपनी बेटी की तो शादी ही क्यों कि वही रखता ना हमेशा अपने घर पर..... मुझे उनकी बातें बहुत दुख पहुंचाती थी और मेरे आंसू निकल आते पर मेरी ज़बान तब भी खामोश रहती मैं उनसे कभी भी कुछ नहीं कहती एक दिन मेरी मम्मी मुझ से मिलने मेरे ससुराल आए तो मेरे ससुराल वालों को यह बात बहुत बुरी लगी मम्मी ने मुझे अपने साथ घर ले जाने की बात कही तो मेरे ससुराल वालों ने मना कर दिया जब मम्मी ने वजह पूछी तो मम्मी को उल्टी-सीधी बातें सुनाने लगे मम्मी को उनका यह बर्ताव अच्छा नहीं लगा उन्होंने कहा कि जब आप  लोग मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो तो आप मेरी बेटी के साथ कितना बुरा व्यवहार करते होगे मम्मी ने मुझसे कहा कि मैं उनके साथ चलूं पर मैंने उन्हें मना कर दिया और किसी तरह वापस भेज दिया धीरे-धीरे मेरे ससुराल वालों की ज्यादतियाँ  बढ़ती जा रही थी जब भी मैं मायके जाने की बात कहती तो जवाब मिलता कि अगर मायके जाना है तो वहीं जाकर रहो वापस मत आना मैं चुप रह जाती मेरे ससुराल वाले मेरे मायके वालों को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे मेरे मायके से कोई भी मुझसे मिलने आए तो उन्हें नागवार गुजरता था
 1 दिन की बात है मेरे जीजाजी किसी काम से हमारे शहर आए हुए थे तो वह हमारे घर भी हम से मिलने आ गए मैंने उन्हें चाय नाश्ता करवाया खाने के लिए भी पूछा पर उन्होंने मना कर दिया वह मुश्किल से हमारे घर 20 मिनट ही रुके होंगे और यह कहकर चले गए कि वह किसी जरूरी काम से इस शहर में आए थे वह तो बस मेरा हाल चाल पूछने आ गए थे उनका यह कहना मेरे ससुराल वालों को बिल्कुल भी नहीं भाया उन्होंने इस बात  की शिकायत मेरे पति से कर दी कहा कि अभी तक तो सिर्फ उसके मां-बाप ही मिलने आते थे और अब रिश्तेदार भी आने लगे हैं आज इस के  जीजा जी आए थे ना जाने इस ने अपने मां बाप से क्या बुराई की है जो अब रिश्तेदार भी इसे  देखने आने लगे मेरे पति अपने घर वालों को  बहुत मानते थे उन्होंने मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि अगर अब कोई भी मुझसे मिलने आए तो मैं उसे भगा दूं और किसी से भी बात ना करूं उनकी  इस तरह की बात सुनकर मुझे बहुत तकलीफ हुई जब मेरी दीदी की शादी हुई थी तब मैं केवल 10 साल की थी मेरे जीजा जी मुझे अपनी बेटी की तरह मानते थे उनके लिए यह शब्द सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा अब तो कोई भी मुझसे मिलने मेरे मायके से आता तो उसे लेकर ना जाने क्या क्या बात मेरे ससुराल वाले करते क्योंकि शायद वह नहीं जाना चाहते थे कि जो मेरे साथ हो रहा है वह किसी को भी पता चले मम्मी पापा बेशर्मों की तरह मेरे घर मुझसे मिलने आ जाते थे मेरे ससुराल वाले उन्हें खूब खरी खोटी सुनाते पर वह हर दो या 3 महीने में मुझसे मिलने जरूर आ जाते थे मैं जब भी अपने पति से कुछ कहना चाहती वह हमेशा टाल देते कहते कि तुम में ही कमी होगी तभी तो मेरे घरवाले तुम्हें पसंद नहीं करते मेरे पति को मुझमें कमियां नजर आने लगी थी  वह मुझे हमेशा डांटने फटकारने लगे थे उनके इस बर्ताव से मैं घुट घुट कर जी रही थी हमेशा कोशिश करती रहती थी कि भूल से भी कभी मुझसे कोई गलती ना हो पर उस सब के बाद भी मुझे बातें सुननी पड़ती थी 1 दिन की बात है मेरे पति ऑफिस से आए तो मैंने उनसे कहा कि आज मुझे आपसे बात करनी है उन्होंने फिर वही पुराना राग अलापा कि अभी टाइम नहीं है बाद में बात करेंगे पर मैंने हक दिखाते हुए कहा कि आप हमेशा यही कहते हैं पर कभी आपके पास मेरे लिए टाइम नहीं रहता आज मुझे आपसे बात करनी है बस और आप मेरी बात सुने बिना बाहर नहीं जाएंगे जवाब मिला मैं औरत नहीं हूं जो तू मुझ पर हुकुम झाड़ रही है...... अब मैं तेरी मर्जी से कहीं भी आऊंगा जाऊंगा यह तूने सोच भी कैसे लिया, तू मुझ पर निर्भर है मैं तुझ पर निर्भर नहीं हूं इसलिए तुझे मेरी बात सुननी पड़ेगी माननी पड़ेगी मुझे नहीं और यह कहकर वह बाहर चले गए मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्यों करते हैं बाहर हर जगह लोग उनकी बहुत तारीफ करते थे उन्हें बहुत मानते थे पर मेरे साथ उनका यह व्यवहार आखिर क्यों है मेरे मन में कई तरह के सवाल थे जिनका जवाब मैं जानना चाहती थी पर जवाब देने वाला कोई नहीं था मैंने जब जब अपने अधिकार के लिए आवाज उठाई मुझे मेरी औकात दिखा कर रोक दिया गया मेरे पति और मेरे ससुराल वाले मेरे साथ गलत कर रहे थे पर मैं उनको कुछ नहीं कह सकती थी
एक दिन मैं अपनी बेटी को टीका लगवाने सरकारी अस्पताल गई वहां पर  मुझे मेरी एक सहेली मिल गई उसकी शादी भी उसी शहर में हुई थी मेरे पति मुझे अस्पताल में छोड़ कर चले गए थे इसलिए मुझे मेरी सहेली से बात करने का मौका मिल गया बातों बातों में मैंने उससे अपने साथ हो रहे बर्ताव के बारे में बताया और पूछा कि मैं क्या करूं उसका जवाब था कि हम औरतें हैं हम अपने हिसाब से नहीं जी सकते अगर हमारे पतियों ने हमें छोड़ दिया तो समाज में हमारी बहुत बदनामी होगी इसलिए चुप रहो वह जो करते हैं उन्हें करने दो तुम्हें खाना मिलता है कपड़े मिलते हैं तुम्हारी जरूरतें पूरी होती हैं अब तुम्हें और क्या चाहिए पुरुष है कुछ भी करने को आजाद है पर हम उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जा सकते मैं चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रही है क्या उसके साथ भी वही सब होता है जो मेरे साथ हो रहा था मैं सोच रही थी कि क्या यही सच्चाई है हम औरतें बस हमेशा पुरुषों के हाथ की कठपुतली बनी रहेगी हमें भी कभी स्वेच्छा से जीने का अधिकार मिलेगा मैंने हर तरह से संभव कोशिश की अपने पति के हिसाब से चलने की पर मेरी सारी कोशिशें बेकार ही रही मैं कभी भी उन्हें खुश नहीं कर पाई फिर मैंने निर्णय लिया कि मैं अब यह जिल्लत भरी जिंदगी नहीं जियूंगी  अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी और कुछ बन कर दिखाऊंगी पर यहां भी समाज मेरे इरादों के आड़े आ गया मैंने जिस किसी से अपने इरादे  के बारे में बात की उसने मेरा हौसला बढ़ाने के बजाय मुझ पर छींटाकशी की कहा कि लाखों की तादाद में बेरोजगार घूम रहे हैं मेरी तो कोई औकात ही नहीं है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं  उन लोगों के इन शब्दों ने मेरे कलेजे को छलनी कर दिया मैं सोच रही थी कि शायद वह सही कह रहे हैं........ मैंने 1 दिन इस बारे में मम्मी से भी बात की तो उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा अब यही तुम्हारा घर है और तुम्हें इन्हीं के मर्जी से चलना पड़ेगा अब हमारा अधिकार नहीं रहा तुम पर...... आखिर क्यों शादी के बाद बेटियां पराई हो जाती हैं और मां-बाप उसकी भलाई के लिए क्यों कुछ नहीं कर सकते यहां तक कि ससुराल वालों की मर्जी के बिना बेटी अपने मां बाप से भी नहीं मिल सकती जिनके घर में पैदा हुई पली बढ़ी अच्छे बुरे की तमीज सीखी  बचपन से लेकर जवानी तक अपना हर दुख हर तकलीफ़ बे झिझक अपने मां बाप से शेयर करती रही आज वही बेटी उनके लिए पढ़ाई क्यों हो गई आज मां-बाप अपनी बेटी के लिए बिल्कुल पराए हो गए क्यों आखिर बेटियों के साथ ही ऐसा व्यवहार क्यों होता है बेटों के साथ क्यों नहीं वह भी तो उन्हीं मां-बाप की संतान है पर  वह कभी पराये  क्यों नहीं होते उनका अधिकार क्यों हमेशा मां-बाप पर होता है क्या लड़की होना इतना बड़ा अभिशाप है...... . मैं आज तक इन सवालों का जवाब ढूंढ रही हूं पर इसका जवाब देने वाला कोई भी नहीं है जब भी हम हमारे अधिकार हक की बात करते हैं हमें यह कह कर रोक दिया जाता है कि तुम ना समझ हो तुम्हारे पास दिमाग नहीं है सही और गलत क्या है तुम्हें समझ में नहीं आता मैं तुम्हारा पति हूं मैं तुम्हारे लिए जो करूंगा अच्छा ही होगा आखिर क्यों किया जाता है हमारे साथ ऐसा व्यवहार जब हम बच्चों को जन्म दे सकते हैं उनका लालन-पालन कर सकते हैं घर परिवार बहुत अच्छे से संभाल सकते हैं बच्चों को अच्छे बुरे की तमीज सिखा सकते हैं तो फिर हम अपने लिए जो डिसीजन लेंगे वह गलत कैसे हो सकता है वैसे तो हर घर हर परिवार की जिम्मेदारी औरत की होती है खाना बनाने से लेकर बड़े बुजुर्गों की सेवा तक उन्हें कब कौन सी दवा खानी है, किस बच्चे के पास क्या नहीं है, किसे  क्या पसंद है, कौन  क्या खाता है वगैरा-वगैरा यानी कि सुबह से लेकर शाम तक एक जिम्मेदार कर्मचारी की तरह अपना हर काम समय पर करती है पर फिर भी बदले में उसे क्या मिलता है गालियां मारपीट और यह कि आखिर वह करती क्या है दो रोटियां बना कर पूरा दिन आराम........ बस हमें देखो हम पूरा दिन काम करते हैं जिससे यह घर का खर्च चलता है तुम्हें क्या है आराम से खा पीकर सारा दिन घर पर पड़ी रहती हो मेरी समझ में नहीं आता कि क्या ईश्वर ने हमें इसलिए जीवन दिया  है कि हम सारी जिंदगी पुरुषों के अत्याचार सहन करते रहे क्या हमें इस गुलामी से कभी आजादी नहीं मिलेगी....
 धीरे-धीरे करके 5 साल गुजर गए और मेरे हालात बद से बदतर हो गए मैंने कई बार सोचा कि मायके चली जाऊं पर फिर याद आता कि मैं तो उनके लिए पराई  हूं अगर मैं वहां गई तो शायद ससुराल वालों से मेरा रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा
 एक दिन तो हद ही हो गई पहले तो घर पर ही गाली गलौज होती थी पर उस दिन तो मेरे पति ने किसी और के कहने पर मुझे सरेआम बदनाम कर दिया गंदी गंदी गालियां दी मेरे बारे में ग़लत और भद्दे इल्ज़ाम लगाए  मेरे बर्दाश्त करने की क्षमता खत्म हो चुकी थी मैंने फैसला किया कि मैं अपनी बच्ची को साथ लेकर यहां से चली जाऊंगी अब और नहीं सुनूंगी मैं जैसे ही अपनी बेटी को लेकर ससुराल से निकली मेरे पति ने कहा सोच लो अगर इस घर से बाहर पैर  रखा तो वापस मत आना मैंने अपनी डबडबाई आँखों से उनकी तरफ देखा वह गुस्से से लाल पीले हो रहे थे मैंने अपने आंसू पोंछते हुए भर्राई हुई आवाज में जवाब दिया...... कि ठीक है नहीं आऊंगी और मैंने उसी समय घर छोड़ दिया कई लोगों ने मुझे रोकने की कोशिश की और मुझे समझाया कि अकेली औरत समाज में नहीं रह सकती तुम कैसे अकेले अपनी बच्ची को पालेगी  तुम लोगों की नजरों में गिर जाओगी अब यही तुम्हारी दुनिया है तुम्हें  यही रहना चाहिए और फिर तुम अपनी बेटी के बारे में तो सोचो अगर किसी को पता चला कि तुम अपने पति को छोड़ कर आई हो तो इसकी शादी में दिक्कत होगी मैंने उनकी एक बात भी नहीं सुनी उस दिन मुझे बहुत ठेस पहुंची थी और मैं वहां एक पल के लिए भी नहीं रहना चाहती थी मैं अपने मम्मी पापा के घर आ गई वह मुझे देखकर चौक गए बोले कि यह मैंने क्या कर दिया पर जब मैंने उन्हें सारी हकीकत बताई तो वह सुनकर दंग रह गए
 कुछ दिनों बाद मेरे पति मुझे लेने आए पर मैंने उनके साथ जाने से मना कर दिया फिर वह अपने साथ कई रिश्तेदारों को लेकर आ गए हमारे घर पर काफी हंगामा हुआ मेरे मम्मी पापा को भी मेरे साथ साथ बहुत कुछ सुनना पड़ा उन लोगों ने फिर से वही बातें कहीं कि कोई भी अपनी बेटी को शादी के बाद अपने घर नहीं रख सकता चाहे वह कितना ही धनवान हो तुम क्या रख पाओगे तुम्हारी बेटी ने गलत किया है उसे वहां से ऐसे नहीं आना चाहिए था मेरे पापा बोले कुछ भी हो पर मेरी बेटी वहां जाना नहीं चाहती तो अब मैं उसे जाने के लिए नहीं कहूंगा उसके साथ बहुत गलत हुआ है हमें तो पहले कुछ पता ही नहीं था मेरी बेटी ने बहुत कुछ सहा है पर अब मैं उसके साथ ऐसा नहीं होने दूंगा.... तभी मेरे पति बोल पड़े..... उसने क्या सहा है अभी तक हम उसे बर्दाश्त करते रहे हैं तुम्हारी बेटी बदचलन  है हमेशा उल्टे सीधे काम करती रहती थी मना करो तो मानती ही नहीं थी....... पापा जी उन्हें बीच में ही रोकते  हुए बोले अगर मेरी बेटी इतनी ही बुरी है तो उसे वापस क्यों ले जाना चाहते हो रहने दो उसे यहीं पर...... पापा का यह जवाब सुनकर मेरे पति झल्ला गए बोले देख लूंगा तुम सब को चैन की सांस नहीं लेने दूंगा और बड़बड़ाते  हुए वापस चले गए पापा ने उनके जाने के बाद मुझसे सवाल किया कि कहीं मेरा इरादा आगे चलकर डगमगा तो नहीं जाएगा मेरी आंखें भर आई थी मैंने कहा नहीं अब चाहे जो हो जाए पर अब उस नर्क में मैं वापस नहीं जाऊंगी पापा ने कहा ठीक है आज से अब तू  मेरी जिम्मेदारी हो बताओ आगे क्या करना चाहती हो मैंने उनसे आगे पढ़ने के लिए कहा उन्होंने इजाजत दे दी
 मेरी बेटी भी अब बड़ी हो रही थी मुझे उसके भविष्य की चिंता होने लगी थी मुझे कपड़े सिलना आता था मैं पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ सिलाई का भी काम करने लगी थी उस से मुझे काफी पैसे मिल जाते थे मैंने एम ए कंपलीट किया फिर एलएलबी भी कर लिया और कोर्ट जाकर प्रैक्टिस करती रही मेरी मेहनत रंग लाई मैं आज एक वकील हूं मैंने अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दी आज वह 15 साल की हो गई है वह कभी अपने पापा को याद नहीं करती मैंने अपना और अपनी बेटी का हक कोर्ट के द्वारा अपने पति से ले लिया उन्होंने बहुत चाहा कि मैं वापस उनके साथ जाकर रहूं पर मैं उस व्यक्ति को कभी माफ नहीं कर सकती जिसको कभी मेरी कदर नहीं थी हमेशा मुझे बेइज्जत करता रहा आज मैं अपनी बेटी के साथ एक सुखी जीवन जी रही हूं जहां पर किसी और के लिए कोई जगह नहीं है इस सब में मेरे मम्मी पापा ने मेरा साथ दिया उन्होंने दुनिया वालों की परवाह नहीं की समाज की परवाह नहीं कि लोगों ने उन्हें बहुत बुरा भला कहा पर उन्होंने उन लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया और मेरा हौसला बढ़ाते रहे जिन लोगों को मैं कभी फूटी आंख नहीं भाती थी आज वही कोई भी काम शुरू करने से पहले मुझसे सलाह लेने आते हैं आज मैं जो भी हूं उसने मेरे मां-बाप का बहुत बड़ा हाथ है मैं हर उस औरत से कहना चाहूंगी जो इस तरह के जुल्म का शिकार है वह अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाएं  हम औरत है तो क्या हमारी कोई इज्जत नहीं या हम मान सम्मान का अधिकार नहीं रखते या हमें हमारे मन के मुताबिक जीने की आजादी नहीं है क्या पुरुष कभी गलती नहीं करते समाज उन्हें बुरा क्यों नहीं कहता वह सब कुछ सही हो या गलत कर सकते हैं पर नारी अगर सही भी करें तो गलत आखिर क्यों ? क्यों सोचते हैं आप ऐसा.... हम नारी हैं कोई खिलौना नहीं है जिसका जब जी चाहे हम से खेल ले और जब जी भर जाए हमें फेंक दे हमें भी तकलीफ होती है हमारे आत्म सम्मान को भी ठेस पहुंचती है हमें भी दर्द का एहसास होता है ! जब तक हम जुल्म सहते रहेंगे पुरुष हम पर अत्याचार करते रहेंगे हमें अपनी मदद खुद करनी पड़ेगी अपने दिल को मजबूत बनाओ और जुर्म का डटकर मुकाबला करो इस समाज को दिखा दो कि नारी अगर ठान ले तो वह किसी भी मुकाम पर पहुंच सकती है बस दिल में जीतने का जज्बा होना चाहिए मन में खुद पर भरोसा होना चाहिए.... कहते हैं कि जो लोग अपनी मदद खुद करते हैं ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है अगर एक रास्ता हमारे लिए बंद हो जाता है तो ईश्वर दूसरा रास्ता हमारे लिए खुद बना देता है नारी दुर्बल, बेचारी, बेसहारा, कमजोर अबला नहीं है उसमें खुद को साबित करने की क्षमता है
वह नारी ही थी जिन्होंने लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे (रानी लक्ष्मी बाई )वह नारी ही थी जिन्होंने इसी भारत देश में कई सालों तक प्रधानमंत्री का पद संभाला ( इंदिरा गांधी ) वह नारी ही थी जिन्होंने अपना सारा जीवन दूसरों की सेवा और इलाज में लगा दिया लोग आज भी उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लेते हैं (मदर टैरेसा) वह नारी ही  थी जिन्होंने अपनी काव्य रचनाओं और मन को छू जाने वाली कहानियां से इस देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने नाम का झंडा फहराया (महादेवी वर्मा )ऐसे ही अनेक नारियाँ  थी जिन्होंने अपने बलबूते पर अपना और इस देश का नाम रोशन किया हममें  भी वही जज्बा और कुछ कर दिखाने की काबिलियत है तो फिर हम अपने अधिकार के लिए  क्यों नहीं लड़  सकते बस जरूरत है तो अपनी सोच बदलने की अपनी कमजोरी को नहीं अपनी हिम्मत को जांचने की अपने अंदर छुपी हुई ताकत को पहचानने की अगर हमने यह सब कर लिया तो हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता हम भी स्वाभिमान के साथ जी सकेंगे और दुनिया को दिखा देंगे कि हम नारी पुरुष रूपी बैसाखी के बिना भी चल सकते हैं और अपना अधिकार जानते हैं हमारे अंदर भी वह क्षमता है जो उनमें हैं

 मैं उम्मीद करती हूं कि मेरी यह कहानी पढ़कर यह सुनकर आप सब में भी कुछ कर दिखाने का जज्बा पैदा होगा आप भी इस जुल्म की जंजीर को तोड़कर आजाद होना चाहेंगी मेरी इस कहानी से अगर किसी एक महिला ने भी अपने अधिकार को जाना और अपनी ताकत को पहचाना तो मैं यह समझूँगी  कि मेरी मेहनत सफल हुई और मैं नारी में जो जागरूकता लाना चाहती हूं मेरा उद्देश्य पूरा हुआ और मैं उसमें कामयाब हो गई.........
यह कहानी काल्पनिक है इसका किसी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है ! यदि यह कहानी किसी व्यक्ति के जीवन से मेल खाती  है तो यह केवल संयोग होगा....

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