* निर्वाण *
हमें ईश्वर ने जन्म दिया, इस संसार में भेजा, हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम उसके बताए हुए रास्ते पर चलें और अपने धर्म का पालन करें ! लेकिन हम माया, मोह में पड़कर अपना हर कर्तव्य, धर्म भूल जाते हैं ! और ग़लत तरीके से धन, दौलत इकट्ठा करने की हर मुमकिन कोशिश करते रहते हैं क्योंकि हम अपने परिवार वालों को सारी सुख - सुविधा देना चाहते हैं अपने बच्चों के लिए वह सब कुछ करना चाहते हैं जिसके सपने हमने कभी अपने लिए देखे थे और इन्हीं सब की कोशिश करते - करते अपना सारा जीवन उनकी (बच्चों की खुशी) के लिए न्योछावर कर देते हैं, पर जब हमें हमारे बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है ( वृद्धा अवस्था में ) तब हम हमारे बच्चों के लिए बोझ बन जाते हैं हमारे बच्चे इतना कहने में भी थोड़ा सा संकोच नहीं करते कि "आपने हमारे लिए किया ही क्या है" बिना यह सोचे कि हमने अपना सारा जीवन इनकी पढ़ाई-लिखाई और भविष्य बनाने के लिए लगा दिया ! तब हमें ईश्वर की याद आती है, ईश्वर ही हमारा एकमात्र सहारा होता है जिससे हमें उम्मीद होती है अगर हम तब भी इस संसार रूपी माया मोह को त्याग कर अपना बचा हुआ जीवन उस इश्वर की आराधना में लगा दे और छल, कपट, लोभ, माया, मोह, दुष्कर्म को कभी भी अपने ऊपर हावी ना होने दें तथा सदाचार का पूरी तरह से पालन करें तो शायद हमारी आत्मा शुद्ध हो जाएगी और तब हम हमारे धर्म का पालन कर पाएंगे और ईश्वर के प्रति जो हमारा कर्तव्य है उसे निभा पाएंगे इसी रास्ते में चलकर हमें "मोक्ष " की प्राप्ती हो सकती है जिसे साधना की अंतिम स्थिति यानी पूर्ण निर्वाण को प्राप्त करना कहते हैं !
आज इस कहानी के द्वारा मैं आप सबको ऐसे ही एक व्यक्ति से परिचित कराना चाहती हूं जिसका सारा जीवन केवल सांसारिक सुख सुविधा को ही सच्चा सुख मानने में बीता किंतु अंतिम समय में उसे ज्ञात हो गया कि सांसारिक सुख केवल कुछ क्षणों का होता है सच्चा सुख तो केवल ईश्वर की प्राप्ति है !
किसी गांव में माधव नाम का एक गरीब किसान रहता था उसके घर में उसकी पत्नी राधा और उसके तीन बेटे थे माधव हमेशा जल्दी से जल्दी धनवान बनने के सपने देखा करता था और धन कमाने के नए - नए स्रोत खोजा करता था राधा हमेशा कहती थी कि हमारे पास जो भी है हम उससे खुश हैं पर माधव पर तो दौलत कमाने का भूत सवार था एक दिन वह इसी सिलसिले में शहर गया काम की तलाश करता रहा शाम होने वाली थी वह सड़क पर पैदल चला जा रहा था तभी उसने देखा कि एक ट्रक ने अपना नियंत्रण खो दिया है और वह तेजी से सामने की ओर आ रहा है ! एक व्यक्ति वहीं पास में सड़क के किनारे खड़े होकर मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था ! उसकी कार भी वहीं खड़ी थी वह बातों में इतना मशगूल (व्यस्त) था कि उसने अपनी ओर आते हुए ट्रक को नहीं देखा ! माधव ने उसे देखा तो बड़बड़ाते हुए बोला....... "साला रईस की औलाद इतना मस्त है बातों में कि सामने से आता हुआ इतना बड़ा ट्रक दिखाई नहीं दे रहा " खैर...... मुझे क्या करना है, मरेगा..... माधव का इतना कहना था कि उसने देखा ट्रक ठीक उसके सामने है, माधव ने आव देखा ना ताव और खुद को बचाने के चककर में उस आदमी को धक्का देते हुए थोड़ा दूर जा कर गिर पड़ा, ट्रक उस कार को कुचलता हुआ आगे जा कर पलट गया
माधव के धक्का देने से वह व्यक्ति भी उस ट्रक की चपेट मैं आने से बच गया था ! माधव को गिरने की वजह से हाथ में हल्की सी खरोच आ गई थी जिससे खून बह रहा था ! वह व्यक्ति माधव को उठाते हुए बोला -.........अरे आपको तो चोट लग गई है चलिए मैं आपको हॉस्पिटल ले चलता हूं ! माधव.... "फिर से मन मे बड़बड़ाते हुए...... फिर से रईसी.... नहीं मुझे अस्पताल नहीं जाना ऐसी छोटी - मोटी खरोच तो हमें हमेशा ही लगती रहती हैं अपने आप ही ठीक हो जाएगी,
वह व्यक्ति नहीं आपको मेरे साथ हॉस्पिटल चलना ही होगा आखिर आपको यह चोट मेरी वजह से ही तो लगी है,.. आपकी वजह से..... ? माधव सोचते हुए बोला...... उस व्यक्ति ने आगे कहा-...... हां मेरी वजह से अगर आपने सही समय पर मुझे वहां से नहीं हटाया होता तो आज मैं जीवित नहीं होता आप मुझे वहां से हटाते हुए ही जमीन पर गिर गए जिससे आपको चोट लग गई , अब माधव समझ गया था कि खुद को बचाने की कोशिश में जो धक्का उस व्यक्ति को लगा था उससे उस व्यक्ति के प्राण बच गए थे जिसे वह माधव का एहसान मान रहा था क्योंकि उस व्यक्ति को यह लगा कि माधव ने उसे बचाने के लिए धक्का देकर ट्रक के रास्ते से हटाया था !....
उस व्यक्ति ने किसी को फोन किया और अपने लिए दूसरी कार लाने को कहा !....कुछ देर बाद वहां एक बड़ी और सुंदर कार खड़ी थी...... वह व्यक्ति..... आइए बैठिए -....अरे मैं तो आपका नाम ही पूछना भूल गया..... क्या नाम है आपका ?...माधव -.....माधव नाम है मेरा....... वह व्यक्ति -.....अच्छा माधव चलिए, कहकर वह दोनों अस्पताल के लिए रवाना हो गए...... कुछ देर बाद अस्पताल में,...... डॉक्टर साहब ज्यादा चोट तो नहीं आई वह व्यक्ति बोला ? डॉक्टर..... नहीं सर हल्की सी खरोच है बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी मैंने पट्टी कर दी है और दवा भी दे दी है..... वह व्यक्ति -...थैंक्यू डॉक्टर अच्छा चलते हैं......... चलिए माधव आपको आपके घर छोड़ दूं..... माधव मैं यहां का रहने वाला नहीं हूं यहां से काफी दूर एक गांव है वहीं से आया हूं........ तो यहां आपका कोई रिश्तेदार है वह व्यक्ति बोला.......... माधव -...नहीं, कोई नहीं है मैं तो बस काम की तलाश में आया था, पर देखिए ना मेरी किस्मत सुबह से रात हो गई और काम ही नहीं मिला कोई बात नहीं सुबह देखते हैं शायद कहीं काम मिल जाए...... अच्छा जी चलता हूं कहकर माधव बाहर की तरफ जाने लगा........ वह व्यक्ति -....सुनिए माधव आप कहां जा रहे हैं ? अगर बुरा ना माने तो प्लीज मेरे घर चलिए ना, आज रात वहीं रुक जाइए,.... माधव -....आप क्यों बेकार परेशान हो रहे हैं मैं यहीं कहीं स्टेशन में रात गुजार लूंगा...... वह व्यक्ति आइए ना प्लीज, अगर आप मेरे साथ चलेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी.... माधव -...अच्छा ठीक है जब आप इतना कह रहे हैं तो चलिए..... वह दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं रास्ते में,... माधव-..... आपने अपना नाम नहीं बताया ? वह व्यक्ति विशाल नाम है मेरा..... अच्छा विशाल जी आप क्या काम करते हैं माधव ने सवाल किया ? विशाल आप प्लीज मुझे सिर्फ विशाल ही कहिए ना जी लगाकर क्यों पराया कर रहे हैं और हां मेरा काम तो आप सभी की सेवा करना है और मैं वही करता हूं..... माधव -...सेवा करते हैं ? कैसे ? अरे भाई मेरे इस शहर में चार होटल हैं और मैं बस उसी के काम में व्यस्त रहता हूं.... तभी विशाल की पत्नी का फोन आ गया...... विशाल -.माधव आपकी भाभी का फोन है, मैं थोड़ा लेट हो जाता हूं तो वह परेशान हो जाती हैं और आज तो मेरे साथ इतना बड़ा हादसा होते-होते रह गया बस इसीलिए परेशान हो गई..... थोड़ी देर बाद एक आलीशान बंगले के सामने उनकी कार रुकी नौकर दौड़कर आया और कार का दरवाजा खोलते हुए बोला....... आइए सर, आपका स्वागत है..... माधव और विशाल दोनों बंगले के अंदर जाने लगे तभी एक 10 साल का बच्चा दौड़ता हुआ आया और डैडी - डैडी कहता हुआ विशाल से लिपट गया..... विशाल -....कुनाल.... . बेटा देखिए यह माधव अंकल हैं आज इन्हीं की वजह से डैडी आपके सामने खड़े हैं वरना...... विशाल की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि एक महिला जो बहुत ही खूबसूरत थी सामने से चली आ रही थी उसे रोकते हुए बोली...... विशाल प्लीज ऐसी बात मत करिए आपको कुछ नहीं हो सकता........... विशाल अच्छा बाबा नहीं कहूंगा....... इनसे मिलो यही है माधव माधव ये हैं मेरी पत्नी गरिमा...... गरिमा -.....नमस्ते भैया मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आइए ना अंदर चलते हैं, और सभी साथ में अंदर चले जाते हैं माधव उन के ठाठ -बाठ देखता ही रह गया..... वहां हर काम के लिए नौकर - चाकर लगे थे बंगले की शान देखते ही बनती थी ! माधव जिन - जिन चीजों के सपने देखा करता था आज वही सब उसके सामने थे,... खाने की मेज पर कई तरह का खाना लगा था,. फल, जूस, दूध, सब मेज पर रखा हुआ था गरिमा चलिए खाना लग चुका है खाना खाते हैं ! विशाल माधव की तरफ रुख करके बोला....
अगर आपको बुरा ना लगे तो एक बात कहूं माधव -.....माधव -... जी कहिए...... विशाल-.... आप यहां काम की तलाश में आए हैं ना ? माधव - जी हां...... विशाल - क्या आप मेरे होटल में मैनेजर के पद पर काम करेंगे विशाल ने झिझकते हुए कहा...... माधव ने कभी नहीं सोचा था कि उसे इतनी बड़ी सफलता इतनी जल्दी मिल जाएगी वह अवाक सा विशाल की तरफ बस देखता ही रह गया..... विशाल - माधव आप यह मत सोचिए कि मैंने अपनी जान बचाने के बदले में आपको यह नौकरी ऑफर की है, आप बहुत अच्छे इंसान हैं, मुझे आप में खूबी नजर आई है प्लीज आप मना मत करिएगा..... और हां आप तो यहां काम की तलाश में आए थे समझ लीजिए आपको काम मिल गया और फिर मैं आप पर एहसान थोड़ी ही कर रहा हूं आप मेहनत करेंगे, काम करेंगे उसी का पैसा आपको दिया जाएगा जैसे कि सभी को मिलता है.... माधव कुछ समझ ही नहीं पा रहा था उसके मुंह से शब्द ही नहीं फूट रहे थे ! विशाल - मैं जानता हूं कि आप बहुत खुद्दार हैं लेकिन सच मानिए मेरे होटल में मैनेजर की जगह खाली है और उसके लिए आप से बेहतर तो कोई हो ही नहीं सकता माधव मन ही मन खुश होते हुए बोला जब आप इतना कह ही रहे हैं तो ठीक है.... लेकिन मैं तो बस दसवीं पास हूं ! विशाल - तो क्या हुआ आपको बस वहां बॉस की तरह हुकुम करना है बाकी सब हो जाएगा आप बस हां कर दीजिए..... खाना खाने के बाद सब सोने चले गए माधव को भी एक बढ़िया कमरा दिया गया माधव खुशी से पूरी रात सो नहीं पाया वह जल्द से जल्द राधा से मिलकर उसे सब कुछ बता देना चाहता था !
अगली सुबह...... विशाल -...गुड मॉर्निंग माधव...... जी नमस्ते विशाल जी मैं, आज अपने गांव जाना चाहता हूं वहां जाकर अपनी पत्नी और बच्चों से मिलकर उन्हें बता दूं और अपना जरूरी सामान भी ले आऊं. ... विशाल - अरे नहीं आप भाभी और बच्चों के बिना कैसे रह सकते हैं आप उन्हें साथ में लेकर आइएगा यहां पर मेरा एक फ्लैट खाली पड़ा हुआ है आप सब वहीं पर शिफ्ट हो जाइए....... माधव की आंखें फटी की फटी रह गई एक के बाद एक कामयाबी उसके कदम चूम रही थी.... माधव -...जी ठीक है.... विशाल - ड्राइवर ! साहब के साथ जाओ आज से तुम्हें इन्हें ही हर जगह लाना ले जाना है माधव को सब कुछ बड़ी आसानी से एक साथ मिल गया जिसके उसने कभी सपने देखे थे पर यह सपना कभी नहीं देखा था कि यह सब कुछ इतनी आसानी से मिलेगा वह गाड़ी में बैठकर गांव की तरफ रवाना हो गया !
गांव पहुंचते ही उसकी गाड़ी को गांव वालों ने घेर लिया वह जानना चाहते थे कि आखिर इस गाड़ी में कौन आया है जैसे ही माधव गाड़ी से नीचे उतरा...... अरे यह तो माधव है ?.......यह कहकर लोगों ने अपने दांतो तले उंगलियां दबा ली राधा और उनके बच्चे भी वहां आ गए..... माधव -...जल्दी से अपना जरूरी सामान बांधों हमे शहर वापस जाना है... राधा -...मगर यह सब.... माधव - समय नहीं है हमें आज ही निकलना है..... राधा ने जो जरूरी सामान था समेटा और बच्चों को साथ लेकर गाड़ी में बैठ गई...... राधा -...आखिर कुछ बताओगे ? माधव -...फुर्सत से बात करेंगे ! जब तक माधव राधा को लेकर शहर पहुंचा तब तक विशाल ने उस फ्लैट में सुख - सुविधा की सारी चीजें रखवा दी.... ड्राइवर राधा और माधव को लेकर विशाल गरिमा के बंगले में पहुंचा विशाल के घर पर...... गरिमा - आइए ना बैठिए....... राधा बैठते हुए चारों तरफ ऊपर नीचे देख रही थी उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था गरिमा ने फटाफट उनके लिए नाश्ता मंगवाया सब ने साथ मिलकर नाश्ता किया गरिमा राधा को अपना घर दिखाती हुई बोली..... पास में ही वह फ्लैट है जहां आपको रहना है अगर कोई परेशानी हो तो जरूर बताइएगा ! शाम को ड्राइवर उन्हें फ्लैट में ले गया, राधा फ्लैट के अंदर जाते हुए माधव से बोली....... आखिर यह सब.... मगर कैसे ? माधव - बताता हूं, सब कुछ बताता हूं पहले थोड़ा आराम कर ले !
कुछ देर बाद माधव ने राधा को सब कुछ बता दिया ! राधा -....देखो जी यह सब सही नहीं है उनका तो फर्ज बनता है यह सब कहने का पर हमें उन्हें मना कर देना चाहिए था नौकरी तक तो ठीक है मगर यह घर और कार मुझे ठीक नहीं लग रहा माधव -....तो क्या करूं..... घर आई लक्ष्मी को ठोकर मार दूं..... मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं हूं.... और फिर मैंने थोड़े ही कहा था उसने खुद अपनी खुशी से दिया है..... राधा -...मगर........ माधव - अगर - मगर कुछ नहीं, मेरा दिमाग खराब मत करो अभी मुझे होटल भी जाना है !
कुछ देर बाद माधव होटल गया वह यह देख कर फूला नहीं समा रहा था कि विशाल उसका स्वागत करने के लिए पहले से वहां मौजूद था ! उसे फूल की माला पहनाकर विशाल ने उसे बधाई दी स्टाफ के लोगों ने भी माधव को बधाई दी विशाल माधव को उसका केबिन दिखाते हुए बोला -.......माधव !...आज से यह कैबिन आपका हुआ यहां के बॉस आप हो.... माधव का केबिन काफी बड़ा और सुंदर था माधव यह सब देख कर खुशी से झूम उठा और विशाल को गले से लगा लिया कुछ देर बाद विशाल वहां से चला गया और माधव जाकर आराम से अपनी कुर्सी में बैठ गया !
अगले ही दिन से माधव मन लगाकर अपना काम करने लगा धीरे-धीरे उसे होटल के कामों के बारे में अच्छी खासी जानकारी हो गई और वह अपने काम में पूरी तरह से निपुण हो गया धीरे-धीरे 5 साल गुजर गए पर माधव को अभी भी तसल्ली नहीं थी वह विशाल की तरह होटल का मालिक बनना चाहता था, मैनेजर नहीं, वह हमेशा सोचता रहता था कि विशाल का एक ही बेटा है और उसके तीन हैं विशाल का जो भी है वह उसके बाद उसके बेटे कुनाल का होगा वह हमेशा विशाल के आगे पीछे डोलता रहता था ! वह सोचता था कि शायद विशाल खुश होकर 1 या 2 होटल उसके बेटों के नाम कर दे, पर विशाल ने ऐसा नहीं किया माधव अंदर ही अंदर कुनाल को देखकर चिढ़ता - जलता रहता था !
इसी चिढ़ में एक दिन माधव ने वह कर डाला जिसकी कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी, वह कुनाल को अपने साथ घुमाने ले गया और सबकी नजर बचाकर एक ट्रक के नीचे धक्का दे दिया कुनाल बुरी तरह जख्मी होकर बेहोश हो गया माधव को विश्वास था कि अब इसका बचना नामुमकिन है उसने विशाल को फोन करके बताया कि कुनाल रोड क्रॉस कर रहा था तभी उसका एक्सीडेंट हो गया, और वह उसे अस्पताल ले जा रहा है ! विशाल और गरिमा ने जब इस दुखद घटना को सुना तो उनके पैरों तले से जमीन निकल गई वह अस्पताल पहुंचे डॉक्टर ने कुनाल को मृत घोषित कर दिया, विशाल और गरिमा तो जैसे जीती जागती लाश बन गए, माधव ने कुनाल का अंतिम संस्कार करवाया और रोने का खूब नाटक किया रात में वह अपने पूरे परिवार के साथ उन्हीं के घर पर ही रहा और उन्हें इस बात का एहसास करवाता रहा कि वह अब अकेले नहीं रहेंगे ! विशाल को माधव पर पूरा भरोसा था वह यह बात सोच भी नहीं सकता था कि जिस इंसान ने उसकी जान बचाई थी वही उसके बेटे का कातिल हो सकता था ! पर विशाल सच्चाई से अनजान था वह नहीं जानता था कि माधव ने उसकी जान नहीं बचाई थी वह तो खुद को बचा रहा था !
दूसरे दिन माधव अपने परिवार के साथ अपने घर वापस आ गया ! राधा-...... कितना बुरा हुआ ना विशाल भैया के साथ अब वह अपनी जिंदगी किसके सहारे गुजारेंगे........ माधव -....जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है, राधा -.... कैसी बातें कर रहे हैं आप ? वह आपके जिगरी दोस्त हैं, आज आप जो भी हैं उन्हीं की वजह से हैं वरना..... उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी माधव बीच में ही उसकी बात काटते हुए बोला...... वरना क्या...... हां ?.....मैंने उसकी जिंदगी बचाई थी इसलिए उसने मुझे यह सब भीख में दिया था...... अपनी जान की कीमत उसने इतने कम में आंकी, अगर वह चाहता तो मेरे नाम एक होटल कर देता.....! मगर उसने ऐसा नहीं किया !...... लेकिन अब उसके पास कोई वारिस नहीं रहा, अब तो उसे मेरे नाम अपना सब कुछ करना ही पड़ेगा..... मैंने यह सब इसीलिए तो........ वह कुछ कहते - कहते रुक गया....... राधा -......कहीं आपने तो कुनाल को.......... माधव खामोश था....... राधा -.....हे ईश्वर.....! यह आपने क्या किया ?माधव -...चुप रहो,.... बकवास मत करो..... धीरे - धीरे माधव अपने बच्चों को विशाल के आगे पीछे घुमाने लगा और बच्चे ज्यादातर विशाल के घर पर ही रहते थे माधव को उम्मीद थी कि अब विशाल जरूर अपने होटल उसके बच्चों के नाम कर देगा पर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कुनाल की मौत के बाद विशाल और गरिमा की जिंदगी बिल्कुल बदल गई थी, ना वह किसी से बात करते थे ना ही कहीं आते-जाते थे सारा काम नौकर चाकर करते थे उनसे जो जितना पैसा मांगता था वह बिना हिसाब-किताब कि उसे उतना दे देते थे .......माधव यह सब देखकर गुस्से से तिलमिला जाता था उसने फिर से एक चाल चली और धोखे से विशाल और गरिमा के साइन करवा लिए और सारे होटल और घर अपने बेटों के नाम करवा दिए जब विशाल को पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी माधव ने बेइज्जत करके विशाल और गरिमा को उनके ही घर से बाहर कर दिया था !
विशाल अब समझ गया था कि उनका बेटा अपनी मौत नहीं मारा था वह तो मारा गया था किसी के साथ अच्छाई करने की उसे इतनी बड़ी सजा मिलेगी उसने कभी नहीं सोचा था वक्त धीरे धीरे गुजरता गया माधव ने अपने तीनों बेटों की शादी कर दी अपना सब कुछ अपने बेटों के नाम कर दिया माधव का बुढ़ापा आ गया था उसके बच्चों का व्यवहार उसके साथ दिन पर दिन खराब होता जा रहा था बेटे जब भी कोई गलती करते तो माधव उन्हें बड़े प्यार से समझाता था पर तब भी उसके बेटे माधव से सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे !
1 दिन की बात है माधव और राधा बगीचे में बैठे हुए थे, तभी माधव का छोटा बेटा वहां से गुजर रहा था.... माधव -...बेटा होटल का काम ठीक से चल रहा है ना ? कोई परेशानी तो नहीं है...... माधव का बेटा -...परेशानी अगर होगी भी तो क्या आप उसे दूर कर देंगे, बात करते हैं,.... माधव क्यों नहीं बेटा..... अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बताओ ! मैंने उन होटलों में बड़ी मेहनत की है तब जा कर इतनी दौलत और शोहरत पाई है, मैं जानता हूं क्या सही है और क्या गलत.... माधव का बेटा -...आप तो रहने ही दीजिए...... आपने तो दौलत की खातिर अपने ही दोस्त के बेटे को मार डाला था, और उनसे उनका सब कुछ छीन लिया था.... बड़े आए सही और गलत बताने वाले..... माधव -...बेटा मैंने यह सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो किया था अगर मैं ऐसा नहीं करता तो तुम्हारी जिंदगी इतनी अच्छी नहीं होती तुम सब भी मेरी तरह हर चीज को तरसते रहते.... माधव का बेटा -...अगर आप हमारे लिए कुछ ना भी करते तो भी हम अपने बल - बूते पर यह सब हासिल कर लेते, पर आपकी तरह छल और कपट नहीं करते.... माधव खून के आंसू पीकर रह गया मगर वह अब कुछ नहीं कर सकता था.....
वह जब बेटों की जली कटी बातें बर्दाश्त नहीं कर पाता था तो बाहर अकेले में जाकर रो लेता उसका घर पर मन नहीं लगता था वह कभी मंदिर चला जाता तो कभी किसी पार्क में जाकर घंटों अकेला बैठा रहता और जब शाम को घर वापस आता तो उसके मन में यह डर सताता रहता कि किसी ना किसी बात को लेकर उसके बेटे उसे फिर से बातें ना सुनाएं धीरे-धीरे उसकी समझ में आने लगा था कि जिन बच्चों के लिए उसने अपने भाई जैसे दोस्त के बेटे को मार डाला उन्हें घर से बेघर कर दिया आज वही बेटे उसे फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करते उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह मन ही मन बहुत पछता रहा था !
1 दिन सुबह माधव अपनी बड़ी बहू से बड़े प्यार से बोला बेटा मैंने अभी तक चाय नहीं पी है, क्या एक कप चाय मिलेगी. ...बहू -.... सारे नौकर अपने कामों में व्यस्त हैं अभी चाय नहीं मिलेगी..... अगर एक दिन चाय नहीं पिएंगे तो मर नहीं जाएंगे...... माधव-..... कैसी बातें कर रही हो बहू.... मरें मेरे दुश्मन..... ! मुझे तो अभी अपने पोते - पोतियो को अपनी गोद में खिलाना है...... माधव का इतना कहना उसकी बहू को बहुत बुरा लगा उसने चिल्ला कर अपने पति को यानी माधव के बेटों को बुलाया और कहा कि...... पिताजी मुझे मरने के लिए कह रहे हैं..... माधव का बेटा.-.....गुस्से में लाल पीला होते हुए बोला..... शर्म नहीं आती आपको अपनी ही बहु को मरने के लिए कह रहे हो....... माधव -...लेकिन बेटा.... मुझे कुछ नहीं सुनना.... आप अभी इसी समय इस घर को छोड़कर चले जाइए..... वरना मुझे आपको यहां से धक्का देकर निकालना पड़ेगा..... माधव की आंखों में आंसू आ गए ! माधव -......आज तक तुम लोगों के लिए जीता आया अपनी पूरी जिंदगी तुम्हें अच्छी जिंदगी देने के लिए लगा दी और......... हमें आप के उपदेश नहीं सुनने अगर उपदेश देने का इतना ही शौक है तो किसी मंदिर में जा कर दीजिए..... जाइए यहां से........ बेटे ने चिल्लाते हुए कहा माधव ने राधा से कहा........ ! अब और बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हो रही है यह मुझे यहां से निकालें इससे पहले हम यहां से चलते हैं..... राधा -...मैंने आपको समझाने की बहुत कोशिश की थी पर आप नहीं माने बस अपनी मनमानी करते रहे यह सब उसी का परिणाम है जो आपको इस रूप में मिल रहा है..... माधव -...ठीक है तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहती तो कोई बात नहीं.... राधा -....हम अगर यहां से चले भी गए तो कहां रहेंगे ? माधव -....हम नहीं सिर्फ मैं यहां से जा रहा हूं तुम यहीं रहो अपने बेटों के साथ.... मैं जाता हूं.... माधव का बेटा -.....हां - हां जल्दी निकलो यहां से मां नहीं जाएंगी.... माधव घर से निकलते समय वहां की हर एक चीज को अपनी डबडबाई हुई आंखों से देख रहा था..... उसने उस घर की हर चीज को अपने हाथों से सजाया था तब उसे थोड़ा सा भी अंदाजा नहीं था कि जिसे वह इतने प्यार से सजा रहा है एक दिन उसे यह सब छोड़कर जाना पड़ेगा..... वह घर से बाहर चला गया उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और कहां जाएं..... उस समय उसे अपने मित्र विशाल और उसकी पत्नी गरिमा की बहुत याद आई.... उसे याद आया कि जब यही बर्ताव जो उसके बेटों ने उसके साथ किया है उसने अपने मित्र के साथ किया था तब वह भी ऐसा ही महसूस कर रहे होंगे उन्हें भी ऐसी ही तकलीफ हुई होगी यह सोच कर वह बहुत रोया और रोते-रोते उसके मुंह से निकला...... हे ईश्वर...... !मुझे रास्ता दिखाओ अब मैं क्या करूं.... हे ईश्वर, अगर औलाद ऐसी होती है तो ऐसी औलाद किसी को मत देना..... ईश्वर शब्द शायद उसके मुंह से पहली बार निकला था क्योंकि वह तो ईश्वर को कभी याद ही नहीं करता था उसे तो बस दौलत से प्रेम था और उसने दौलत कमाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी थी मगर आज उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी...... वह रोता - बिलखता और पैदल चलता रहा उसके पैरों में छाले पड़ गए !
एक दिन वह एक आश्रम में पहुंचा एकदम फटे हाल वहां एक महात्मा रहते थे उन्होंने माधव को देखा तो उन्हें उस पर दया आ गई उन्होंने माधव को अपने पास बैठाया और पानी पिलाया..... तभी वहां पर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आया और उसने महात्मा के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया.... महात्मा -...सब कुशल मंगल है ना ? अधेड़ व्यक्ति-... जी ईश्वर की कृपा है.... महात्मा -और आपकी बेटी कैसी है ? अधेड़ व्यक्ति -.....जी ईश्वर की कृपा और आप के आशीर्वाद से उसकी शादी तय हो गई है उसी का निमंत्रण पत्र लेकर आपके पास आया हूं..... माधव अब भी अपना सर नीचे करके बस रोए जा रहा था..... अधेड़ व्यक्ति-... अरे यह कौन है ?और क्यों रो रहे हैं ? माधव ने अपना सिर ऊपर उठाया और अपने आंसू पूछते हुए उस अधेड़ व्यक्ति की तरफ देखा......... आश्चर्य से..... अरे विशाल आप....... अधेड़ व्यक्ति विशाल ही था माधव ने विशाल के पैर पकड़ लिए...... विशाल-... माधव आप.... !यहां.... ? और इस हाल में क्या हुआ ? माधव -.....आप मुझे माफ कर दीजिए, मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है..... यह कहकर माधव ने अपनी पूरी दास्तान विशाल को सुना दी..... विशाल -....माधव आप रोइए नहीं सब ठीक हो जाएगा और बड़े प्यार से माधव के आंसू पोंछने लगा.... माधव -.....वैसे मुझे हक तो नहीं है पर फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि भाभी कैसी हैं.... विशाल -...गरिमा ठीक है..... जब हम घर से बेघर हुए तब इन्हीं महात्मा ने हमें सहारा दिया था..... फिर मैं एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने लगा और इसी बीच हमने एक बेटी को गोद ले लिया जिसकी कल शादी है...... माधव -...विशाल मै जानता हूँ मैंने बहुत बुरा किया हैं आप के साथ..... फिर भी आज मैं आप से अपने हर गुनाह की माफ़ी मांगता हूँ.... क्या आप मुझे माफ कर देंगे... .. विशाल-... ईश्वर ने आपको आपके किए की सजा दे दी..... मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है..... कल मेरी बेटी की शादी है आशीर्वाद नहीं दोगे मेरी बेटी को...... माधव -....आपका दिल बहुत बड़ा है विशाल जी पर मुझे माफ करिए मैं भाभी जी के सामने कौन सा मुंह लेकर जाऊं मैं उनसे नजरें नहीं मिला सकता....... विशाल ने बहुत कहा कि वह उसके साथ घर चले पर माधव नहीं माना थोड़ी देर बाद विशाल वहां से चला गया..... माधव विशाल को जाते हुए देख रहा था और रो - रो कर ईश्वर से माफी मांग रहा था..... महात्मा -....अब मत रो तुम यहां आराम से रह सकते हो.... माधव -....मैं इस दया का हकदार नहीं हूं, मैं बहुत बुरा इंसान हूं, आप भी मुझे यहां से धक्के मार कर निकाल दीजिए....... महात्मा -....नहीं ऐसा नहीं कहते तुम्हें अपनी गलती का हृदय से पछतावा हो रहा है तुम ईश्वर की शरण में आओ वह तुम्हें माफ कर देंगे..... नि:स्वार्थ भावना से उनके बताए हुए मार्ग पर चलो इस माया रुपी दुनिया का त्याग कर दो..... लोभ, कपट, छल इसे कभी अपने पास मत फटकने देना, कोई किसी का नहीं होता हमारे कर्म ही हमारे दु:ख का कारण होते हैं..... अब सब कुछ भूल जाओ और ईश्वर की शरण में चले जाओ.... माधव की समझ में आ गया था कि सांसारिक सुख केवल मायाजाल है जो कुछ पल का है..... ईश्वर के बताए मार्ग पर चलकर ही उसे सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है और वह उन्हीं के बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है वह अपने तन - मन को केंद्रित करके ईश्वर की आराधना में लीन हो गया...........
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