* आलसी राजा *








बहुत पुरानी बात है एक राजा था वह बहुत आलसी था वह कोई भी काम समय पर नहीं करता था इसलिए उसके राज्य में अव्यवस्था फैली हुई थी वह अपना काम हमेशा कल पर टालता रहता था......... उस की तीन रानियां थी उसमें से सबसे बड़ी रानी जिसका नाम नानावती था वह बहुत समझदार और होशियार थी...... राजा के आलसी पन से सारे दरबारी, मंत्री और उसकी रानियां सभी बहुत परेशान रहती थे ..... उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता था कि कहीं कोई राजा के आलसी पन का फायदा उठाकर राज्य पर आक्रमण ना कर दे लेकिन राजा को कोई चिंता नहीं थी वह आराम से खाता - पीता और सोता रहता था कई बार मंत्रियों ने राजा को राज्य की सच्चाई से अवगत कराना चाहा परंतु राजा उसकी बात बीच में ही काट देता था और कहता था कि...... सब कुछ ठीक हो जाएगा, मैं सब संभाल लूंगा, आखिर वह राजा था उसके सामने कौन यह हिम्मत जुटा पाता कि उसके खिलाफ कोई बोले........ धीरे-  धीरे दिन बीतते जा रहे थे राजा को जब जिस चीज की जरूरत होती उसे वह समय पर मिलता था अब उसे और क्या चाहिए था...... उसके आसपास क्या हो रहा है उसने कभी भी जानने की कोशिश नहीं की........ जिस राज्य का राजा ऐसा होगा उसकी प्रजा कैसी होगी ? चारों तरफ अशांति का माहौल था जिसके मन में जो आता था वह वही करता था उसके मन में राजा का थोड़ा सा भी डर नहीं था सब अपनी - अपनी डफली अपना - अपना राग अलाप रहे थे किसी को किसी की नहीं पड़ी थी.... रानी नैनावती इस माहौल को देखकर चिंतित हो गई उन्होंने सोच लिया कि अब राजा को कैसे भी करके उनका कर्तव्य याद दिलाएंगी....  रानी नैनावती ने नौकर को आज्ञा दी कि जाकर मंत्री जी को बुला लाए ...... मंत्री जी नानावती के पास आकर खड़े हो गए और बोले..... महारानी जी, हुकुम कीजिए आप ने किस लिए बुलाया है....... नानावती-.... मंत्री जी आप तो जानते ही हैं कि महाराज को हम सब ने इस राज्य में हो रही गतिविधियों के बारे में कई बार बताने की कोशिश की किंतु महाराज पर  हमारी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह तो वही करते हैं जो उन्हें ठीक लगता है किंतु अब बहुत हुआ अब समय आ गया है...... महाराज को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए नहीं तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा सब कुछ बर्बाद हो जाएगा....... मंत्री जी -.....आप ठीक कह रही हैं महारानी,... किंतु हम ऐसा क्या करें जिससे महाराज को अपनी गलती का एहसास हो जाए...... नैनावती -....मंत्री जी आप चिंता ना करें..... हमने सोच लिया है कि हमें क्या करना है किंतु हमें उसके लिए आपके सहयोग की आवश्यकता होगी....... मंत्री जी-  आप आज्ञा दे महारानी...... महारानी ने मंत्री जी से धीरे-धीरे कुछ कहा जिसे सुनकर मंत्री जी खुश हो गए और बोले अब ऐसा ही होगा महारानी कहकर वहां से चले गए
अगले दिन सुबह -सुबह महारानी नैनावती बगीचे में बैठी हुई थी राजा उनके पास पहुंचा और बोला.... महारानी नैनावती मुझे स्नान करना है और कहरी अब तक स्नान घर में पानी नहीं रख गई..... नैनावती -....महाराज आती ही होगी आप यहां आइये और हमारे साथ कुछ समय बताइए..... राजा नैनावती के पास बैठते हुए.... अरे वाह !...बगीचा तो फल और फूलों से भरा हुआ है..... कितना सुंदर लग रहा है...... नैनावती -.... जी महाराज यह तो हमेशा ही सुंदर लगता है किंतु आप यहां कभी आते ही नहीं..... राजा -..... आप ठीक कह रही हैं महारानी..... और राजा इतना कह कर बगीचे में घूमने लगा महारानी भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी तभी एक दासी ने आकर कहा कि महारानी भोजन तैयार है.... महारानी-... महाराज चलकर भोजन कर लीजिए राजा हां मुझे भूख तो लगी है किंतु मैंने अब तक नहाया ही नहीं है .... महारानी-.... महाराज कुछ खा लीजिए शायद तब तक कहरी पानी लेकर आ जाए..... महाराज -..... ठीक है महारानी चलिए...... भोजन कक्ष में महारानी भोजन परोसने हुए...... अरे इसमें तो खीर है ही नहीं,..... सब जानते हैं ना कि महाराज को अगर खीर नहीं मिली तो वह खाना नहीं खाते....... रसोइया -.....क्षमा करें महारानी..... ग्वाला अब तक दूध लेकर नहीं आया बिना दूध के मैं खीर कैसे बनाता.... राजा गुस्से में लाल - पीला हो गया..... क्या हो गया है आज सबको.. ? पहले वह कहरी पानी लेकर नहीं आई और अब यह ग्वाला भी....... कहता हुआ अपने शयनकक्ष में चला गया..... महारानी नैनावती की योजना काम कर रही थी अब तो रोज कुछ ना कुछ ऐसा होता जिससे राजा के खाने-पीने और सुख - सुविधाओं आदि में कुछ ना कुछ अड़चन आ जाती.... एक दिन तो राजा के गुस्से की हद ही ना रही उसने सबको दरबार में बुलाया और मंत्री को आज्ञा दी की सभी काम करने वालों का सर धड़ से अलग कर दिया जाए..... सभी महाराज का यह रौद्र रूप देखकर घबरा गए क्योंकि इससे पहले राजा ने कभी किसी को डांटा तक नहीं था नानावती महाराज के सामने आकर बोली..... महाराज ! हमें क्षमा करें, इस तरह से हमें दरबार में नहीं आना चाहिए..... किंतु आप का यह निर्णय सुनकर हमें यहां आना पड़ा कृपया हमें बताएं कि क्या हुआ है, जिससे आप इतने गुस्से में हैं.... राजा -... तो और क्या करूं मैं कई दिनों से देख रहा हूं कि कोई भी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है सब के सब लापरवाह हो गए हैं नैनावती -....आपकी बात सही है महाराज !........यहां पर लापरवाही की वजह से बहुत सी अवस्थाएं हो रही हैं...... महारानी नैनावती को तो इसी क्षण की प्रतीक्षा थी.... वह जानती थी कि राजा केवल आलसी हैं, बुद्धि की उन में कोई कमी नहीं है..... उन्होंने आगे कहा..... महाराज अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं आपसे आपके राज्य के बारे में कुछ बताना चाहती हूं..... राजा -....जी कहें........ रानी नैनावती ने मंत्री जी की सहायता से राजा को उनकी प्रजा और आसपास हो रही सारी गतिविधियों से अवगत कराया राजा के कान खड़े हो गए..... उनके राज में ऐसा हो रहा है उसे तो यह पता ही नहीं था, उसने तुरंत मंत्री जी को आज्ञा दी कि मुनादी करवा दें  कि राजा ने सबको यहां महल में बुलाया है.... जब सारी प्रजा महल में इकट्ठा हो गई तो राजा ने उन सबको सारे कायदे - कानून समझा दिए और आज्ञा का उल्लंघन करने वालों को सख्त से सख्त सजा देने के लिए कहा... राजा की बात सुनकर सभी अपने-अपने काम में जुट गए
धीरे-धीरे सब कुछ सही होने लगा राजा भी  अब अपने राज्य और महल दोनों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने लगा

राजा के नाम का डर सबके मन में बैठ गया था, सब जानते थे कि अगर कुछ भी गलत हुआ तो राजा उन्हें तुरंत सजा देगा इसलिए गलती से भी कोई गलती नहीं करना चाहता था, अब सब कुछ वैसा हो रहा था जैसा होना चाहिए हर तरफ खुशी का माहौल था, प्रजा अपने राजा का गुणगान कर रही थी, नानावती की युक्ति काम आ गई राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया और राजा को कुछ पता भी नहीं चला..... रानी नैनावती ने महल के दास - दासियों को राजा से कहकर  क्षमा करवा दिया सभी ने रानी का धन्यवाद किया और अपना अपना काम करने लगे......
 किसी ने सच ही कहा है कि  "आलस्य बुराइयों की जड़ है"

Comments

Popular posts from this blog

*अर्पण *

* मैं नारी ही तो हूँ *

** तमन्ना **