* इश्क़ है "बेवज़ह" *
हाँ तुझ से ही करती हूँ
इश्क़ मैं "बेवज़ह "
न देखा कभी प्यार
तेरी आँखों में खुद के लिए
फिर भी न जाने क्यूँ
तुझ से इश्क़ है "बेवज़ह "
हर पल हर लम्हा
इंतज़ार रहता है
तेरे आने की उम्मीद तो नहीं है
पर न जाने क्यूँ
इंतज़ार है "बेवजह "
इन आँखों से नींद
न जाने क्यूँ रूठी है
ख़्वाब का तो पता नहीं
पर हर पल तुझे महसूस करती हूँ "बेवज़ह "
न तुझ से कोई रिश्ता -नाता है मेरा
फिर भी इक अनजानी डोर से
बँधी हूँ तुझ से मैं "बेवज़ह "
न तुझे पाने की तमन्ना है
न खो जाने का डर
इक अनजानी मंजिल की तरफ़
चल पड़ी हूँ मैं न जाने क्यूँ "बेवज़ह "
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