"औरत "
जब दुनियाँ में आई तो नाम मिला लड़की का
किसी ने दुआयें दीं तो किसी ने लड़की होने पर कोसा
किसी ने कहा लक्ष्मी है तो किसी ने नाम दिया पनौती का
बचपन बीता जवानी आई तो नाम मिला पराये धन का
विदा होकर ससुराल पहुँची तो नया रिश्ता नया नाम मिला
किसी की बहू किसी की पत्नी किसी की भाभी होने का सम्मान मिला
इन रिश्तों में ऐसी उलझी ज़िंदगी, कि खुद को भूल गई
मेरी अपनी पहचान मैं खुद ही भूल गई
पर अभी भी सिलसिला नहीं रुका रिश्तों का
अभी तो अहसास बाक़ी था माँ बनने का
एक नवजात बच्ची से लेकर माँ बनने का अहसास
मैं बयां नहीं कर सकती
इतनी बड़ी ज़िंदगी को चंद पन्नों पर नहीं लिख सकती
माँ बनने के बाद अहसास हुआ कि औरत क्या होती है
हर रिश्ते को एक माला में पिरो कर रखती है....
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