"बेटियाँ "
किस्मत वालों के नसीब में ही होती हैं बेटियां
कभी बहू कभी बेटी हर शक्ल में खिदमत करती हैं बेटियां
हर घर की रौनक होती हैं बेटियों से
एक आशियां को जन्नत बनाती हैं बेटियां
मगर अफसोस ! आज का दौर क्या है ?
अपनों के बीच ही महफूज नहीं है बेटियां
एक अच्छी बहू तो चाहिए सबको यहां "महक"
फिर भी घर के आंगन में, क्यों खटकती है बेटियां
हर राह चलती लड़की का
लोगों को सिर्फ जिस्म दिखता है
जमाने की ऐसी गंदी सोच को
कब तक सहती रहेंगी बेटियाँ
हर लड़की किसी की बहन, बेटी है
क्यों यह सोच जमाने को नहीं भाती है
कुछ घूरती हुई नजरें
अनहोनी की दस्तक
हर वक्त डर के साए में रहती हैं बेटियां
आखिर क्यों है यह दहशत जो उन्हें डराती है
यह कैसा खौफ है जिसे सोच कर ही वह सहम जाती हैं
अब दिल पर रखिए हाथ और सोचिए जरा
"महक" का है सवाल जवाब दीजिए जरा
क्यों सोच ऐसी रखते हैं
क्या हम उन्हें जरूरत का सामान दिखते हैं
या अब भी उनकी नजर में
खिलौना है बेटियां
एक बात अब भी मेरे मन को कचोटती है
कि आखिर कब तक, सिसकती रहेंगी बेटियां
सिसकती रहेंगी बेटियाँ........
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