"वजह"
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हमारे जीवन में कई तरह के उतार -चढ़ाव आते रहते हैं और हम कोशिश करते रहते हैं उनसे बाहर निकलने की, परेशानियों से जूझते रहते हैं !
कभी -कभी मायूसी भी हो जाती है ! फिर कहीं से एक उम्मीद की छोटी सी किरण हमें नज़र आती है और हमारी कोशिशें फिर से ज़ोर पकड़ने लगतीं हैं !
इसके पीछे "वज़ह" होती है जो हमारी उम्मीदों को कभी कम नहीं होने देती !
एक ऐसी ही "वज़ह" से मैं इस कहानी के ज़रिये आप सब को रूबरू कराना चाहती हूँ !
बात उन दिनों की है जब रमेश कक्षा 12 में पढ़ता था ! वह एक ऐसे गाँव का रहने वाला था जहाँ पर विकास के नाम पर कुछ नहीं था ना पक्की सड़क थी, ना लाइट, और ना ही पढ़ने के लिए कोई विद्यालय,
रमेश पास के ही गाँव के एक इंटर कॉलेज में पढ़ता था !
रमेश के माता - पिता मजदूरी करते थे, रमेश समझदार था वह जानता था कि माँ - बाबा किस तरह अपना पेट काटकर उसे पढ़ा रहे है ! इसलिए वह खूब मन लगाकर पढ़ाई करता था, वह भी काम करके अपने माँ -बाबा का हाँथ बटाना चाहता था, पर उस के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भी मजदूरी करे ! वह तो बस उसे पढ़ा - लिखा कर अफ़सर बनाना चाहते थे, इसलिए जब भी रमेश काम करने की बात कहता, उसके पिता ये कह कर मना कर देते कि तू बस पढ़ाई कर हम हैं ना काम करने के लिए !
हालांकि रमेश के पिता अक्सर बीमार हो जाते थे,पर वह कभी भी रमेश को इस बात का अहसास नहीं होने देते थे, वह जानते थे कि अगर रमेश को इस बात का पता चलेगा तो वह उन्हें काम नहीं करने देगा !
स्कूल में रमेश सभी अध्यापकों का चहेता विद्यार्थी था, वह पढ़ने में तो होशियार था ही उसमें ईमानदारी और स्वाभिमान भी कूट-कूट कर भरा था ! प्रधानाध्यापक उसे बहुत मानते थे कॉलेज में इंटरवल के समय- रमेश- प्रधानाध्यापक ने आवाज दी.... रमेश- जी गुरु जी.... प्रधानाध्यापक सालाना परीक्षा होने वाली है और मैं जानता हूं कि तुम इस कक्षा में भी अव्वल दर्जे से पास होगे, रमेश-.... गुरुजी मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा आगे ईश्वर की मर्जी, प्रधानाध्यापक- कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..... अच्छा रमेश आगे पढ़ने के लिए क्या सोचा ?
रमेश पास के शहर में डिग्री कॉलेज है सोचता हूं उसी में दाखिला ले लूंगा .. लेकिन बाबा बीमार रहते हैं अब उनसे काम नहीं होता... मैं भी पढ़ाई के साथ कुछ काम करना चाहता हूं, अभी नहीं.... प्रधानाध्यापक बोले..... परीक्षा हो जाने दो फिर बाद में काम करने की सोचना, अभी तुम सिर्फ पढ़ने में मन लगाओ.... तभी इंटरवल समाप्त होने की घंटी बजी और रमेश कक्षा में चला गया!
अगले दिन रमेश स्कूल नहीं आया.... प्रधानाध्यापक को उसकी फिक्र हुई तो वह छुट्टी के बाद रमेश के घर पहुंच गए प्रधानाध्यापक- क्या बात है रमेश ? आज तुम स्कूल नहीं आए ? रमेश कुछ कहता उससे पहले ही उसके पिता ने उत्तर दिया..... मास्टर साहब.... मैं थोड़ा सा बीमार क्या हुआ यह मेरी खिदमत में लग गया और स्कूल नहीं गया..... मैंने बहुत कहा पर देखिए ना कितना जिद्दी हो गया है सुनता ही नहीं है! रमेश -....ज़िद्दी मैं नहीं हूं आप हैं तभी तो मेरे हज़ार बार कहने पर भी आप शहर नहीं गए डॉक्टर को दिखाने के लिए बस यही पर वैद्य जी से दवा लेकर खाते रहते हैं रमेश के पिता -.....अरे मुझे कुछ नहीं हुआ मैं क्यों जाऊं डॉक्टर के पास थोड़ी सी खासी ही तो आ रही है वैद्य जी की दवा से ठीक हो जाऊंगा........ प्रधानाध्यापक से रमेश के घर की आर्थिक स्थिति छुपी हुई नहीं थी वह जानते थे कि पैसों के अभाव में रमेश के पिता अपना इलाज नहीं करवा रहे हैं, वह उनकी मदद करना चाहते थे पर वह जानते थे कि यह स्वाभिमानी परिवार है सीधे-सीधे इनकी मदद करना ठीक नहीं होगा इसके लिए उन्हें कोई और रास्ता निकालना पड़ेगा !
अगले दिन विद्यालय में-..... गुरुजी.... रमेश ने प्रधानाध्यापक को आवाज दी.... क्या बात है रमेश बाबा की तबीयत तो ठीक है ना ? रमेश -.....जी ठीक है गुरुजी..... मुझे काम चाहिए आप तो जानते हैं ना कि बाबा बीमार रहते हैं मैं उनकी मदद करना चाहता हूं, क्या ऐसा कोई काम मिल सकता है जिससे मेरी पढ़ाई का हर्जा ना हो और मैं काम भी करता रहूं प्रधानाध्यापक -...... बेटा पहले परीक्षा दे लो इम्तिहान सर पर हैं ! और तुम काम करना चाहते हो रमेश गुरु जी मुझे बाबा को शहर ले जाना है उनकी जांच करवानी है इसके लिए मुझे पैसा चाहिए जो कि बस काम करके ही मिलेगा ! प्रधानाध्यापक उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गए बोले ठीक है मैं शाम को यहां के जमीदार से बात करके बताऊंगा रमेश -..... जी अच्छा गुरुजी..... शाम को प्रधानाध्यापक खुद रमेश के पास आए और बोले...... रमेश बहीखाता देख लोगे क्या ? रमेश खुश होकर देख लूंगा गुरुजी..... तो ठीक है अभी जमीदार के यहां चले जाओ....... और हां तुम्हारे काम करने से तुम्हारी पढ़ाई पर कोई असर नहीं होना चाहिए, प्रधानाध्यापक ने हिदायत देते हुए कहा....... नहीं होगा गुरुजी कहता हुआ रमेश जमीदार के यहां चला गया.... उसे शाम के समय ही बही -खाते का काम देखना था !.......
कुछ दिन गुजर गए जमीदार रमेश के काम से बहुत खुश था क्योंकि रमेश हमेशा समय पर जाता था और अपना काम पूरी इमानदारी से करता था....... एक दिन रमेश अपने पिता को लेकर जिला अस्पताल पहुंचा और डॉक्टर को अपने पिता की बीमारी के बारे में बताया, डॉक्टर ने जांच करवाने की सलाह दी, जांच के बाद डॉक्टर ने रमेश को बुलाया और उससे कुछ कहा..... जिसे सुनकर रमेश स्तब्ध रह गया...... उसे ऐसा लग रहा था मानो उसके शरीर से जैसे जान ही निकल गई हो रमेश के पिता कुछ दूरी पर खड़े थे वह रमेश के पास आकर बोले....... क्या कहा डॉक्टर ने ? तू कुछ बोलता क्यों नहीं ? रमेश ने अपने पिता को एकाएक गले से लगा लिया...... पिता उसे अपने आप से अलग करते हुए ..... अरे क्या हुआ बता ना ? रमेश अपने आप को संभालते हुए...... कुछ नहीं आप जल्द ही ठीक हो जाओगे मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा...... कहते हुए वह बाबा को साथ लेकर अस्पताल से बाहर आ गया !
रमेश के पिता को कैंसर था जो कि लास्ट स्टेज पर पहुंच चुका था गांव आकर रमेश ने किसी को कुछ नहीं बताया वह बहुत परेशान सा रहने लगा था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें, उसने स्कूल भी जाना बंद कर दिया था बस दिन रात वह अपने बाबा के पास बैठा सोचता रहता था...... वह एकदम बदल सा गया था...... प्रधानाध्यापक रमेश के घर आए रमेश ने प्रधानाध्यापक की तरफ देखा और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, प्रधानाध्यापक - क्या हुआ रमेश बताओ ? तुम रो क्यों रहे हो ? रमेश के पिता - मास्टर साहब ना जाने उस डॉक्टर ने रमेश से ऐसा क्या कह दिया जब से शहर से आया है बस चुप है कुछ बोलता ही नहीं...... प्रधानाध्यापक ने रमेश से पूछने की बहुत कोशिश की पर रमेश खामोश ही रहा, अगले दिन सुबह रमेश ने बाबा को जगाना चाहा पर वह नहीं जागे, रमेश ने उन्हें हिलाया पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई रमेश के पिता की मृत्यु हो चुकी थी ,.... रमेश के मुख से एकाएक चीख निकल गई वह बहुत रोया उसकी आवाज सुनकर सारे गांव वाले इकट्ठा हो गए, उन्होंने मिलकर रमेश के पिता का अंतिम संस्कार किया !
अब रमेश पूरी तरह टूट चुका था, उसके पिता की मौत ने उसे अंदर से खोखला बना दिया था..... कुछ दिनों बाद प्रधाना -अध्यापक-...... रमेश कब तक ऐसे बैठे रहोगे कल से तुम्हारी परीक्षा है ना पढ़ाई नहीं करनी ?...... रमेश-.... अब मुझसे नहीं होगा गुरु जी मुझे माफ कर दीजिए...... रमेश ने रूंधी हुई आवाज में कहा प्रधानाध्यापक के बार-बार समझाने के बाद भी रमेश नहीं माना,.... रमेश की मां उसे प्यार से समझाते हुए-....... बेटा...... जो होना था हो गया, शायद ईश्वर को यही मंजूर था, तेरे आगे तेरी पूरी जिंदगी पड़ी है, बेटा तू अब कुछ मत सोच बस पढ़ाई कर परीक्षा सर पर है तेरी, रमेश- मुझे पेपर नहीं देना..... कहकर वह फफक - फफक कर रो पड़ा, मां के समझाने पर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा धीरे- धीरे दिन बीते जा रहे थे पर रमेश में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा था वह अभी भी बस गुमसुम सा चुपचाप बैठा रहता था !
एक दिन रमेश अपने घर के बाहर बैठा हुआ था उसके सामने से एक अर्थी निकली "राम नाम सत्य है" की आवाज ने उसकी अंतरात्मा को झकझोर दिया वह लाख कोशिश करने के बाद भी अपने आप को रोक नहीं पाया, उसने एक व्यक्ति से पूछा यह कौन है ? आवाज आई इंटर कॉलेज के प्रधानाध्यापक यह सुनकर वह सन्न रह गया, वह धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गया, थोड़ी देर बाद उससे रहा नहीं गया और वह भी शमशान की तरफ चल दिया और वहां जाकर बैठ गया अपनी आंखों के सामने अपने प्रधानाध्यापक की चिता को जलते देख कर वह बहुत रोया रोते-रोते उसने पूरी रात वहीं शमशान घाट पर बिता दी, सुबह उठकर वह प्रधानाध्यापक के घर पहुंचा वहां जाकर उसने देखा कि प्रधानाअध्यापक का बेटा अपनी मां को धीरज देते हुए उन्हें बड़े प्यार से खाना खाने के लिए मना रहा है ! प्रधानाध्यापक का बेटा -..... मां पिताजी तो हमें छोड़ कर चले गए हैं अब अगर आप भी खाना पीना छोड़ देंगी तो आप बीमार हो जाएंगी.... हमें आपकी जरूरत है मां कृपया आप थोड़ा सा खाना खा लीजिए ना....... हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं अगर आपको कुछ हो गया तो हम कैसे जिएंगे ?...... रमेश ने यह देखा तो उसे एकाएक अपनी मां की याद आ गई, जिन्हें वह अपने दुख में भूल सा गया था वह भूल गया था कि उसके पिता के जाने के बाद जितना दुख उसे हुआ है उससे कहीं ज्यादा दुख उसकी मां को हुआ होगा फिर भी वह अपना दुख भूल कर उसे ढांढस बंधा रही थी, रमेश उल्टे पैर अपने घर की तरफ भागा और जाकर अपनी मां से लिपट गया, मां -......रमेश क्या हुआ बेटा ? किसी ने कुछ कहा है क्या ? चेहरे पर हाथ फेरते हुए...... अरे तू तो रो रहा है..... क्या हुआ मेरे बच्चे ? रमेश -.....कुछ नहीं मां उसने कई महीनों बाद अपनी मां को गौर से देखा था वह बहुत कमजोर हो गई थी और उन्हें अब ठीक से दिखाई भी नहीं देता था, रमेश अपने आंसू पोंछते हुए.... मां मुझे जमीदार के यहां जाना है कुछ काम है, कहकर रमेश चल दिया.... अपने बच्चे का यह बदला हुआ रूप देखकर रमेश की मां के चेहरे पर खुशी छलकने लगी, रमेश जमीदार के यहां पहुंचकर ......क्या मुझे आपके यहां फिर से काम मिल सकता है ? जमीदार - क्यों नहीं, कल से ही काम पर आ जाओ !
रमेश लगन और ईमानदारी से अपने काम में जुट गया धीरे-धीरे उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और साथ-साथ काम भी करता रहा, अब वह अपनी मां की बहुत अच्छे से देखभाल करता था.... वक्त गुजरता गया और रमेश अपनी ईमानदारी और लगन से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता गया !
आज 12 साल बाद वह एक माना हुआ प्रसिद्ध कैंसर का डॉक्टर है, उसने ठाना है कि गांव-गांव के हर व्यक्ति को वह जागरूक बनाएगा... और उन्हें बताएगा कि कैंसर कैसे होता है और उसके क्या लक्षण होते हैं, उन से कैसे बचा जा सकता है, यह लाइलाज नहीं है, अगर समय पर इसका पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है, वगैरा-वगैरा वह नहीं चाहता कि उसके बाबा की तरह कोई और भी इस बीमारी का शिकार हो !
मां-बाप हर इंसान के लिए बहुत मायने रखते हैं ऊपर वाला ना करें कि किसी के मां-बाप का साया उसके सर पर से उठे पर अगर उनमें से कोई एक हमें छोड़ कर ईश्वर के पास चला जाए तो हमें उस दूसरे की खातिर वह सब करना चाहिए जिसकी उम्मीद वह हमसे करते हैं, हमें उस एक को वजह बना कर आगे बढ़ना चाहिए, ताकि उनकी बची हुई जिंदगी में गम के बादल नहीं खुशियों के रंग हों !
"अगर हमारी जिंदगी में वजह ना हो तो सोचिए जिंदगी कैसी हो एक वजह ही तो है जो हमें कभी हार नहीं मानने देती"
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